स्थान- गांव
माहौल- शादी का
विवाहिता का घर
लड़की सीसे के सामने बैठा के विवाह के लिए तैयार कराई जा रही है।
लड़की की माँ अंदर कमरे में प्रवेश करती है।
लड़की की माँ- सारी तैयारियां हो गई?
सजाने वालों में से एक महिला- जी, बस कुछ छण और।
लड़की की माँ- जरा मैं भी तो देखूं कैसी लग रही है मेरी लाडली।
लड़की की माँ- (सर से चुनरी हटाते हुए।)- वाह क्या चाँद सी चमक रही है।
लड़की की माँ- (थोड़ा ठहर कर)- ठीक है, तैयारियां जल्द ख़त्म करो।
सजाने वाली महिला।- जी।
थोड़ी देर बाद।
लड़कियों का शोर गूंजते हुए। (बारात आ गई… आ गई..)
शादी की शारी रश्में पूरी होने के बाद।
जब लड़की विदा होने वाली होती है। तभी लड़के का भाई “सुजीत” कुछ दूर पर जाता। जब वो वहां से निकलता है तो उसकी माँ पूछती है “कहाँ जा रहा है रे”?
सुजीत- थोड़ी देर में आ रहा हूँ. वाशरूम..
सुजीत की माँ- जल्दी आ..
सुजीत सीधा अंदर जाता है और वहां उसे उस गांव की एक लड़की “रीता” जो की खुद को ब्याही जाने वाली लड़की की बहन बताती है, वो उसे मिलती है।
वो सुजीत से पूछती है “मुझे भूल तो नहीं जाओगे?
Sujit- बिलकुल नहीं।
Rita- मुझसे बातें करते रहना।
Sujit- हाँ, ठीक है।
“थोड़ा रुक कर।” लेकिन मैं बात कैसे करूंगा। तुम्हारा नंबर?
Rita- मुझे मालूम था। ये लो, पेपर शीट बढ़ाते हुए।
Sujit- Ooo! पहले से पूरी तैयारी में आयी थी।
Rita- और क्या?
Sujit- विल कॉल यू, बाय।
सुजीत बाहर आ जाता है।
Sujit ki maa- कितनी देर लगा दी, चल जल्दी चल।
लड़की विदा हो कर लड़के के घर आ जाती है।
कुछ दिनों के बाद।
लड़की अच्छे से घर में सेटल हो जाती है। सब बहुत प्रसन्न थे। अब घर में सब को सुजीत की ही फ़िक्र थी, वो कैसे रहेगा? फ्यूचर में क्या करेगा? किसी को भी कुछ भी समझ में नहीं आता था। हर रोज उसका ड्रीम चेंज हो जाता था, कभी कहता की वो कुछ बनेगा, और कभी कहता की वो कुछ और बनेगा।
सब उसका मजाक उड़ाते और कहते ये तो कुछ नहीं करेगा, उसके पापा तो यहाँ तक कहते की ये तो बिना मतलब का है।
“ सुजीत के पापा एक रिटायर्ड पुलिस अफसर थे। उसके बड़े भाई एक रेलवे इंजीनियर थे। उसकी एक बड़ी बहन भी थी जो की एक NGO फर्म में काम करती थी। वो फर्म अबॉण्डेड बुजुर्गों की देखभाल करती थी, और लोगों से उनके केयर के लिए फण्ड इकठ्ठा करती थी। उसकी बहन को सभी बुजुर्ग अंकल आंटीज बहोत मानते थे। उसके भैया से तकरीबन 1 साल पहले सुजीत की बहन का विवाह भी हो चुका था। वो उसी शहर में अपने पति जो की एक डेंटिस्ट थे, उनके साथ रहती थी।”
उनके बाद अब सुजीत, जो की घर का सबसे छोटा बच्चा था, सबको उसकी बहुत फिक्र थी।
सुजीत का बचपन से ही किसी भी चीज में मन नहीं लगता था। उसे बहुत सारी चीजें सिखाई गई, बहुत कुछ ट्राई किया गया, लेकिन उसने किसी चीज में कभी भी इंटरेस्ट नहीं दिखाया। हर चीज उसे बहुत ही कठिन लगती थी।
जब कभी भी वो किसी चीज को सीखने के लिए थोड़ा भी अपने दिमाग पर जोर देता तो उसका मन बोझिल हो जाता, और उसे ज़िन्दगी बहुत ही कठिन लगने लगती। वो तो यहाँ तक सोंचने लगता की आखिर ये ज़िन्दगी है ही क्यों?
उसके अजीब से सवाल और उसकी बातें सुन कर उसकी माँ बहुत दुखी हो जाती, और फिर उसे उस काम को छोड़ देने को कहती। फिर थोड़ी देर बाद वो मस्ती में हसने, खिलखिलाने लगता। जब उसे कुछ भी ना करने को कहा जाता तो वो बड़े आराम से या तो सो जाता, या फिर इधर- उधर घूम फिर आता। खाता- पीता ,और ज़िन्दगी को मजे से जीता।
लेकिन जैसे ही कुछ सीखने, कुछ करने, या कुछ मेहनत वाला काम आता, वो फिर से दुखी हो जाता, ज़िन्दगी को ताने देता, और भी विचित्र बातें करता। माँ उसका मुँह देख कर उसे कोई भी काम नहीं करने देती, और सारी बातें दुबारा रिपीट हो जाती।
वो पढ़ने में भी बहुत कमजोर था, और उसे क्लासेज में अक्सर बहुत से सब्जेक्ट्स में क्रॉस लग जाते। किसी तरह से वो हाँथ जोड़ कर, टीचर्स के आगे गिड़गिड़ा कर एक्साम्स में पास मार्क्स जोड़-तोड़ कर लाता। कभी-कभी एक्साम्स के दौरान, उसके फ्रेंडस को उसका रोता हुआ चेहरा देख कर दया आ जाती, और वो उसे ऐनसर्स दिखा-बता कर उसे पास करा देते।
जैसे-तैसे उसने अपनी स्कूलिंग ख़तम की। भगवान् भरोसे वो 10th भी पास कर गया। और उसे अब इंटरमीडिएट का एग्जाम देना था।
उसके एग्जाम से कुछ ही दिन पहले उसके बड़े भाई की शादी में उसकी दोस्ती “रीता” से हुई थी। सुजीत ने वक़्त निकाल कर अपने फ्रेंड रीता को कॉल किया। उससे बातें कर के सुजीत को बहुत ही सुकून मिलता। वो बड़े ही उत्सुकता से हर रोज उससे फ़ोन पर बातें करने का इंतजार करता।
किसी को भी इस बात की भनक तक नहीं थी की सुजीत और रीता एक दूसरे से बात कर रहे हैं।
दिन बीता, महीने बीते,.. रीता ने सुजीत को जब बड़े प्यार से पढ़ाना शुरू किया तब, पहली बार सुजीत ने पढ़ाई में इंटरेस्ट दिखाया। वो फ़ोन पर ही सुजीत को पढ़ने के ट्रिक्स बताती, उन् ट्रिक्स का इस्तेमाल करके वो झट से सबकुछ पढ़ के समझ लेता। देखते ही देखते उसने इंटरमीडिएट का एग्जाम दिया और वो अच्छे नंबर से पास कर गया। उसके दोस्त भी हैरान थे की वो बिना उनके मदद के कैसे पास हो गया। सब अचंभित थे।
ये सिलसिला जारी रहा.. और इंटर के बाद वो ग्रेजुएशन भी पास कर गया। अब बारी थी उसके किसी अच्छे नौकरी पाने की। नौकरी पाने के लिए उसने बहुत से सरकारी नौकरियों के लिए ट्राई किया। लेकिन वो उसमें भी चयनित नहीं हो पाया। उसने कई तरह के बिज़नेस के लिए अपने पिता से पैसे लिए, लेकिन सारे पैसे डूब गए, कुछ भी नहीं हो पाया। सब उससे निराश थे। हर बार, वो कुछ ना कुछ गवा देता, और अपने पिता का नुक्सान करवाता।
फिर अंत में उसके पिता ने अपने एक ख़ास दोस्त से बात कर के उसे उनके ऑफिस में भेजना शुरू करवाया। वहां भी उसका किसी भी काम में मन नहीं लगा। उसके पिता के दोस्त भी उससे निराश थे लेकिन वो उसके पिता के कारण कुछ बोल नहीं पाते थे।
फिर उसके पिता को किसी ने सलाह दी की वो “सुजीत” की शादी करवा दें। जब सुजीत के शादी की बात शुरू हुई तब सुजीत ने सबको रीता के बारे में बताया। रीता भी सुजीत से शादी के लिए तैयार थी। किसी ने भी आपत्ति नहीं जताई, सिवाय उसके भाभी के।
“दरअसल रीता और सुजीत के भाभी के घरवालों के बीच उस गांव के एक जमीन को लेकर मतभेद था। दोनों घरों में दुश्मनी का माहौल था। सुजीत के भैया और भाभी के शादी के वक़्त उनलोगों ने गांव में कुछ तनाव का माहौल ना रहे इसीलिए ऊपर ऊपर से समझौता कर लिया था, इसीलिए उनका परिवार भी शादी में मौजूद था।
लेकिन जहाँ तक रही बात रिश्तों की, तो दुश्मन के घर की लड़की से शादी कराना उसकी भाभी को मंजूर नहीं था।
सबने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन सुजीत की भाभी नहीं मानी। घर में बिलकुल तनाव का माहौल था। अंत में सबके ख़ुशी के खातिर सुजीत और रीता ने अपने सम्बन्ध को तोड़ने का निर्णय लिया। उनदोनों ने ये तय किया की वो अब कभी भी बात नहीं करेंगे।
फिर थोड़े दिनों बाद, फिर से सुजीत के लिए दूसरे रिश्ते आने शुरू हो गए। उनमें से एक लड़की सुजीत को पसंद आई, और उसने उससे शादी भी कर ली।
लेकिन, अभी भी सुजीत का रवैया बिलकुल पहले ही वाला था। वो बिलकुल भी मन लगा कर काम नहीं करता था। उसके पिता के दोस्त के दया के कारण वो ऑफिस में रोज जाता तो था। लेकिन उसका परफॉरमेंस सही ना होने के कारण उसकी अर्निंग बहुत कम थी जिससे उसका उसकी अकेले की सैलरी से अपना और अपनी पत्नी का पेट भरना मुश्किल था।
सुजीत और उसके परिवार का खर्चा सही से ना चलने के कारण उसे अक्सर अपने पिता से भी कुछ पैसे लेने पड़ते थे। कुछ दिनों बाद उसकी एक प्यारी सी बेटी हुई, जब उसकी बेटी स्कूल जाने लायक हुई, तो उसे एक और बेटी हुई। दोनों जोड़े को बेटे की लालसा थी, इसीलिए उनलोगों ने एक बार और प्रयास किया और अंत में उन्हें एक बेटा भी हुआ।
बीवी और बच्चों को, सुजीत के कमाई से पालना बहुत मुश्किल था, और सुजीत के पिता के पास भी ज्यादा पैसे नहीं रहते थे इसीलिए, सुजीत ने इधर-उधर से कर्जा मांग कर अपना जीवन यापन शुरू कर दिया। चुकी, सुजीत की अर्निंग कम थी, और वो कुछ अच्छी जॉब या अच्छी पोजीशन पर भी नहीं था इसीलिए उसके लिए शादी के अच्छे रिश्ते भी नहीं मिल पाए थे, और उसे मजबूरन एक गांव की एक अनपढ़ लड़की से विवाह करना पड़ा था। उसकी बीबी को खाना बनाने के अलावा किसी और काम में भी दिलचस्पी नहीं थी, इसीलिए उससे भी अर्निंग की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। जब कर्जदारों ने उनके ऊपर अपना पैसा वापस लेने के लिए चढ़ाई शुरू की, तो घर की इज्जत बचाने के लिए सुजीत के बड़े भाई को पैसे का इंतजाम करके वो कर्जा चुकाना पड़ा।
धीरे- धीरे, ये रोज की बात हो गई। सुजीत कुछ सालों में नए कर्जदार इकट्ठे कर लेता, और उसके बड़े भाई कर्जा चुका देते। सुजीत के पिता को भी जो पेंशन मिलती, वो पैसे भी सुजीत और उसके परिवार के ख़र्चे में ख़तम हो जाते।
जब ये शिलशिला जारी रहा तब धीरे- धीरे सुजीत की भाभी को फिर से गुस्सा आ गया। और उसकी भाभी ने सुजीत के भैया को पैसा देने से मना करने को कहा। इसपर सुजीत के भैया और उनके पत्नी के बीच अनेकों बार झगड़े भी हुए। कई बार तो सुजीत के भैया को अपनी पत्नी से छुपा कर सुजीत को पैसे देने पड़ते थे।
जैसे-तैसे वक़्त निकला, और सुजीत के पिता की मृत्यु हो गई। कुछ दिनों बाद उसकी माँ भी चल बसी। सुजीत के बड़े भाई के अपने बच्चे थे, उनके दो बेटे और एक बेटी थी।
अपने परिवार का खर्चा उठाने में दिक्कत होने के कारण थक हार कर अंत में वो भी अब सुजीत को पैसे देने में असमर्थ से होने लगे थे।
अब तो सुजीत की बड़ी बेटी 7th में, छोटी बेटी 5th में, और उसका छोटा बेटा 2nd स्टैण्डर्ड में आ चुका था।
सुजीत को अपने परिवार का खर्चा निकालने का कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा था। वो गरीबी और लाचारी की स्थिति में पहुँच चुके थे।
इधर ये सब चल रहा था, वही दूसरी तरफ
रीता की शादी हो चुकी थी, उसके भी दो बच्चे थे, एक बेटा, और एक बेटी।
रीता के शादी के कुछ चार साल बाद ही उसके हस्बैंड की डेथ हो चुकी थी। चुकी, रीता के हस्बैंड एक सरकारी बैंक ऑफिसर थे, इसिलए उसके स्थान पर रीता को बैंक में जॉब मिल गई थी। रीता अच्छा खासा कमा लेती थी। रीता के पैसों से उसके बच्चे एक सुकून भरी ज़िन्दगी जी रहे थे।
संजोग से कुछ सालों के बाद रीता का उसी शहर में ट्रांफर हुआ जहाँ सुजीत रहता था। जब वो उस शहर में आई तो उसने सुजीत से कॉन्टैक्ट किया। सुजीत बड़े प्रसन्न मन से रीता से मिलने जाता है और फिर धीरे-धीरे रीता और सुजीत के परिवार में घनिस्टता बढ़ जाती है। रीता अपने साथ साथ सुजीत के घर का खर्चा चलाने के लिए भी सुजीत को पैसे देना शुरू कर देती है।
अब सुजीत की ज़िन्दगी में फिर से खुशहाली लौट आती है। सुजीत की थोड़ी -बहुत अर्निंग और रीता के दिए हुए पैसों से, सुजीत और रीता दोनों का परिवार ख़ुशी-ख़ुशी जीवन यापन कर लेता था। देखते ही देखते रीता के बेटी की शादी हो जाती है। रीता की बेटी बहुत होनहार होती है, और वो अपने शहर की एक जानी मानी लॉयर बन जाती है। उसकी शादी भी उसी शहर के एक दूसरे लॉयर हुई होती है क्योंकि वो दोनों कोर्ट में ही मिले थे।
उसके कुछ सालों के बाद रीता के बेटे की भी उसके ऑफिस की एक लड़की के साथ शादी हो जाती है। रीता का बेटा एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होता है और उसकी वाइफ भी।
अब सुजीत की सबसे बड़ी बेटी भी ग्रेजुएट कर चुकी होती है, वहीँ उसकी छोटी बेटी 12th, और उसका सबसे छोटा बेटा 7th में पहुँच चुका होता है।
जब सुजीत के बड़ी बेटी की शादी की बात चल रही होती है तभी रीता का फिर से ट्रांसफर होने की वजह से वो चली जाती है। और सुजीत बिलकुल अकेला पड़ जाता है।
वो फिर से कर्ज मांगने की सोंचता है, लेकिन बार बार कर्ज दे कर सब ऊब चुके थे इसीलिए कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं था। उसके बड़े भाई भी अपने घर परिवार में ज्यादा खर्चे होने के कारण उसकी मदद में असमर्थ थे।
सुजीत का मन बिलकुल भारी हो गया था। वो समझ नहीं पा रहा था की अब क्या करें। वो बहुत दिनों तक परेशान रहा और फिर उसे अपने आप पर गुस्सा आया की वो क्यों इतना सुस्त और असमर्थ है। फिर धीरे-धीरे उसने अपने आलस्य को त्यागना शुरू किया। उसमें एक अजब सा बदलाव आ गया। वो दिन-रात मेहनत करने लगा। उसके पिता के दोस्त उसकी मेहनत को देख कर बहुत ही गर्व महसूस करने लगे। उसने अपने एक साल के मेहनत में ही अपने कंपनी का नाम रौशन कर दिया। सब अचंभित और दंग थे की आखिर उसने ऐसा कैसे कर दिया।
उसकी कड़ी मेहनत से उसने एक ही साल के अंदर ढेर सारे पैसे कमाए। अपनी कंपनी में अच्छी पोजीशन पाया। लाखों में उसकी सैलरी हो गई। ऊपर से उसे अलग-अलग करोडो के ऑफर्स आने लगे, और शहर के जाने-माने नामी लोगों में उसका नाम आने लगा। अन्ततः उसने ये साबित कर ही दिया की अगर आलस्य इंसान को घेरे रहे तो इंसान सारी ज़िन्दगी बेकार रह सकता है, लेकिन जिस दिन से वो अपने आलस्य को उतार फेके, निश्चित रूप से उसकी ज़िन्दगी बदल सकती है। फिर उस इंसान को कभी भी दूसरों के आगे हाँथ फैलाना नहीं पड़ेगा। वो इंसान अपने दम पर होगा।
वक़्त के साथ सुजीत ने अपने दोनों बेटियों की शादी बड़े ही धूम धाम से करवाई। शहर के बड़े-बड़े लोग उन शादियों में आए। उसने अपने छोटे बेटे को भी आलस्य त्याग उससे कड़ी मेहनत करवाई। वो भी आगे चल कर बहुत ही होनहार बना। और इस तरह से सुजीत ने आलस्य को त्याग कर अपनी और अपने परिवार की ज़िन्दगी बदल दी।
डिस्क्लेमर- यह कहानी पूरी तरह से लेखक की कल्पना है। सभी पात्र, लोग, स्थान काल्पनिक हैं। इसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। यदि आप इस कहानी में दिखाई गई किसी घटना को किसी अन्य कहानी या व्यक्ति की वास्तविक कहानी के समान पाते हैं, तो यह केवल एक संयोग है। लेखक का उद्देश्य केवल दर्शकों का मनोरंजन करना है। लेखक कभी भी इस कहानी के माध्यम से किसी समुदाय को आहत नहीं करना चाहता। यदि कोई व्यक्ति इस कहानी को अपने आप से जोड़ता है और दावा करता है कि यह पहले से ही उसके साथ हुआ है तो यह सिर्फ एक संयोग मात्र है और उस मामले में लेखक जिम्मेदार नहीं है।
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