सोनू और उसका स्कूल
(A story by Raj Ranjan)
शाम के 6 बज रहे थे। सोनू अभी भी हरी घास वाले खुले मैदान के ऊँचे स्थान पर बैठा अपनी भैंसों को चरते हुए निहार रहा था, और वो अपने घर के स्थिति के बारे में कुछ सोंच रहा था। उसके पिता, जो की गांव में एक ग्वाले थे और वो भैंसों के दूध को शहर में बेचने ले जाया करते थे। उसी से उनका घरखर्च निकलता था।
सोनू का काम सुबह-शाम अपनी भैंसों को हरी घास चराने का था जिससे की भैसें अच्छा दूध दे सके। एक तरह से देखा जाए तो सोनू अपने घर में पैसे कमाने में अपने पिता की मदद ही कर रहा था।
सोनू जिसकी आयु 14 वर्ष थी उसके पीछे उसकी दो छोटी बहने भी थी। उनके शादी के लिए पैसे जमा करने की चिंता में अभी से ही सारा परिवार पैसे इकट्ठे करने में जुटा हुआ था। कभी- कभी वो अपने पड़ोस के लड़के प्रदीप, जो की शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ा करता था उससे भी बातें करता था, जब कभी भी छुट्टी में वो घर आता था तब।
प्रदीप से बात करने पर उसे पता चलता था की प्रदीप को कितनी ज्यादा जानकारी है और वो कितना तेज तर्रार लड़का है। उसके ज्ञान और तेज को देख कर सोनू को भी पढ़ने की इक्षा होती थी। लेकिन ग़रीबी ने उसके पांव जकड़ रखे थे। उसके घर में, उसके पिता के पास उतने पैसे नहीं थे की वो सोनू के पढ़ाई का खर्चा उठा सके।
इसी उधेड़- बुन में लगा वो ख्यालों में खोया हुआ था। तभी उसने देखा की वहां पर शहर से कुछ लड़के गांव घूमने के लिए आए हुए थे। वो वहां अपनी फोर व्हीलर से आए थे। वहां उनके साथ उनकी गाड़ी में कुछ महिलाएं भी थी। वो लड़के उन महिलाओं के लिए, पास के चाय की दूकान से कुछ कप चाय लिए थे।
उन्हें चाय को गाड़ी तक पहुंचाना था, लेकिन वो ग्लास के ज्यादा गर्म होने के वजह से चाय को गाड़ी तक नहीं पहुंचा पा रहे थे। सोनू को ऐसा लगा की वो उनकी मदद कर सकता है। वो तुरंत दौड़ कर गया और उनसे बोला की लाओ भैया मैं मदद करता हूँ। वो फटाफट गर्म चाय के ग्लास को गाड़ी तक पहुंचा आया। ये देख कर वो शहर के लड़के दंग थे।
उन्होंने सोनू से पूछा के उसके हांथ नहीं जलते क्या? उसने ऐसा कैसे कर दिया। ये सुन कर सोनू ने कहा की मुझे ऐसे काम करने की आदत है। मैं अपने घर में ऐसे बहुत से काम खुद किया करता हूँ। ये सुन कर उनलोगों ने कहा की हम तो अपने घर में कुछ भी नहीं करते। हमें तो बस, सब पढ़ने के लिए कहते हैं।
उनलोगों ने बोलना जारी रखा!, हमने तो सुना है की गांव के लोग बहुत मेहनती और मजबूत होते हैं। कुश्ती से लेकर पहलवानी और बहुत से भारी-भरकम काम वो बड़े ही आसानी से कर लेते हैं। उनकी बातों को बीच में ही काटते हुए सोनू ने कहा, ऐसा ना कहें आपसब। आप शहर के लोग भी पढ़ने-लिखने में बहुत तेज-तर्रार हुआ करते हैं। आप सब पढ़ कर उतने पैसे कमा लेते हैं जितने की हम सब कड़ी मेहनत कर के भी नहीं कमा पाते हैं।
इसपर शहर के लड़कों ने सोनू से पूछा, के तुम नहीं पढ़ते हो क्या? दुखी मन से सोनू ने उन्हें बताया के वो पढ़ना चाहता है लेकिन उसके पिता के पास उतने पैसे नहीं की वो उसके पढ़ाई का खर्चा उठा सके।
इसपर उन लड़कों में से एक ने बोला, ऐसा कुछ नहीं है भाई, पढ़ने वाले कहीं भी पढ़ के तेज हो जाते हैं, और नहीं पढ़ने वाले चाहे कितने भी अच्छे स्कूल में अच्छे शिक्षकों से पढ़े, वो नहीं ही पढ़ पाते हैं। अगर तुम सचमुच पढ़ना चाहते हो तो सरकार मुफ्त शिक्षा तो सरकारी स्कूल में दे ही रही है। तुम वहां भी पढ़ सकते हो।
ये सुन कर सोनू बोला हां, "पढ़ तो सकता हूँ लेकिन वहां अच्छी व्यवस्था नहीं है, और अगर मैं स्कूल चला गया तो फिर भैसों को कौन चराएगा, मेरे पिता दूध बेचने शहर चले जाते हैं, माँ और छोटी बहनों से ये काम करा नहीं सकते और वो करेंगी भी नहीं। इसी वजह से मैं स्कूल पढ़ने नहीं जा पा रहा हूँ।"
सोनू की बात सुनकर उनमें से एक लड़के ने कहा, हम तुम्हारे पिता से बात करेंगे, अगर तुम चाहो तो सरकारी स्कूल में ज़रूर पढ़ सकते हो, वैसे भी सरकार बच्चों को पोशाक राशि, और किताबें मुफ्त देती हैं। और साथ ही साथ अनाज भी कम रेट पर देती है। तुम्हे तो बस पढ़ना है। इतना सुन कर सोनू बोला, ठीक है मैं अपने पिता से बात करूँगा और इसपर विचार करूँगा। फिर वो लड़के अपनी चाय ख़तम कर के अपनी गाड़ी में बैठ कर चले गए।
सोनू भी अपनी भैंसो को ले कर अपने घर लौट आया। रात में जब सोनू के पिता दूध बेच कर लौटे तब सोनू ने उनसे बात की, और उसने उनसे कहा की वो स्कूल जाना चाहता है, अगर प्राइवेट स्कूल के लायक आपके पास पैसे नहीं हैं तो वो सरकारी स्कूल में ही पढ़ लेगा। सोनू की बातें सुन कर उसके पिता ने कहा की वो इसपर सोंच के बताएंगे।
कुछ दिन बीत गए, लेकिन सोनू के पिता ने स्कूल के बारे में कोई बात नहीं की। उसका भैंस चराना जारी था। स्कूल में हुई छुट्टी में एक दिन प्रदीप गांव आया। सोनू ने प्रदीप से बात की और उसे अपने सरकारी स्कूल में पढ़ने के विचार के बारे में बात बताई। प्रदीप ने भी इस बात को एक अच्छा विचार बताया। प्रदीप ने सोनू को अपने पिता से दुबारा पूछने का सुझाव दिया।
प्रदीप के कहने पर सोनू ने एक बार और अपने पिता से बात की, सोनू के पिता ने कहा की वो किसी और को भैंस चराने के काम के लिए तलाश रहे हैं। जैसे ही कोई मिलेगा वो सोनू का एडमिशन गांव के सरकारी स्कूल में करा देंगे। ऐसा कह कर सोनू के पिता ने सोनू को अस्वासन दिया। कुछ दिन और सोनू का भैंसो को चराना जारी रहा।
कुछ दिन बाद सोनू के पिता ने सोनू को अपने पास बुलाया और एक आदमी से मिलाया। देखो सोनू, ये हैं रमेश भैया, आज ये तुम्हारे साथ भैंस चराने जाएंगे, तुम इन्हे सारी जरुरी चीजें समझा देना, और कल मैं तुम्हारा एडमिशन एक सरकारी स्कूल में करा दूंगा, क्योंकि कल से रमेश भैसों को चराएंगे।
ये सुन कर सोनू बहुत खुश था। सोनू ने बड़े अच्छे से रमेश को सबकुछ सिखा दिया। सोनू को तो सारी रात नींद नहीं आई। वो सारी रात सोंचता रहा की अगले दिन वो स्कूल जाएगा तो वहां नए-नए दोस्त बनाएगा। दोस्तों से मुलाकात करेगा, उनके साथ बैठ कर पढ़ेगा और साथ ही साथ खेलेगा भी। ये सब सोंचते सोंचते वो सारी रात जगा ही रह गया।
जब उसे ऐसा लगा की सुबह होने ही वाली है और अब उसके स्कूल जाने में बस कुछ ही घंटे बचे हैं तो उसे बहुत ही सुकून सा मिलने लगा। थोड़ी देर के लिए उसने आँखे बंद की और जब उसकी आँखें खुली तो उसके पिता उसके सामने खड़े थे, और वो उससे पूछे की क्यों स्कूल नहीं जाना क्या? ये सुनकर वो हड़बड़ाते हुए उठा और जल्दी- जल्दी सब काम निपटा कर थोड़े ही देर में तैयार हो गया।
उसके पिता उसे ले कर स्कूल गए। चूँकि अक्षर, शब्द, और ढेर सारी बातें वो प्रदीप और अपनी माँ से सीख चूका था, और प्रदीप ने तो उसे किताबें तक पढ़ना सीखा दिया था, हिंदी और इंग्लिश दोनों में। इसिलए उसका एडमिशन सीधा दूसरी क्लास में हुआ।
वो स्कूल आकर बहुत ही खुश था और अच्छा महसूस कर रहा था। वो रोज स्कूल जाता और आता, और बहुत सी बातें अपने कॉपी में नोट करके रखता था। स्कूल से उसे किताब- कॉपी मुफ्त मिल गए थे, पोशाक राशी भी मिली थी जिससे उसने अपना स्कूल ड्रेस सिलवाया।
वो स्कूल की वर्दी में बहुत ही हैंडसम दिखता था। वो स्कूल से मिले होमवर्क भी अच्छे से करता था। दूसरी ओर रमेश भैंसो को चराने का काम अच्छे से करता था। रमेश उन्ही के गांव का एक बेरोजगार इंसान था जो बिलकुल अनपढ़ था और कुछ भी नहीं करता था। इसीलिए सोनू के पिता ने उसे भैस चराने का काम दे दिया था एक नियत मूल्य पर।
सोनू के पिता के इस एक फैसले से रमेश को भी एक काम मिल गया था, जिससे उसकी कमाई हो जाती थी, और सोनू मन लगा कर स्कूल में पढ़ाई भी कर लेता था। सोनू बहुत सी चीजें जो अपनी नोटबुक में लिख कर रखता था उसे वो प्रदीप के छुट्टी में गांव आने पर प्रदीप के साथ डिसकस कर लेता था।
बेचारा प्रदीप जो की गांव में आने पर बोर होता था उसे भी सोनू से बात करके बहुत अच्छा लगता था। सोनू को प्रदीप से बात करके बहुत सी जानकारिया मिलती थी और ज्ञान बढ़ता था।
सबकुछ अच्छा चल रहा था, अभी सोनू को अपने स्कूल में एक ही चीज अच्छी नहीं लगती थी कि उसके स्कूल कि व्यवस्था कुछ ठीक नहीं थी। स्कूल कि दीवारों पर अच्छा पेंट पोचारा नहीं था, क्लासरूम में बेंच और पंखे नहीं थे, बच्चों को जमीन पर दरी बिछा कर उसपर बैठ कर पढ़ना पड़ता था।
इन समस्याओं से वो जूझ रहा था। वो चाहता था कि ये व्यवस्थाएं वहां ठीक हो जाए, पर वो ऐसा कैसे करता। लेकिन एक दिन उसके स्कूल में ऐसा शख्स आया, जिसके आने से सोनू कि समस्या को दूर करने की एक उम्मीद मिल गई।
एक दिन सोनू के स्कूल में कोई बड़े साहब आए, जिन्होंने स्कूल की समस्या को दूर करने के लिए बड़ा सा डोनेशन दिया, और साथ ही साथ उस गांव के मुखिया, सचिव, और सरपंच से बात करके स्कूल की व्यवस्था को ठीक करने के लिए जोर दिया। उनके इस तरह जोर देने पर उन्हें पता चला की स्कूल मैनेजमेंट के लिए सरकार की तरफ से पैसों का फंड तो आता है, लेकिन उनलोगों ने पैसे को दबा रखा था।
सभी उस फंड के पैसे को आपस में बाँट लेते थे, और उनलोगों ने हेडमास्टर को भी खुद में मिलाकर उसका मुँह भी बंद कर रखा था। लेकिन उस शख्स के सामने किसी की भी नहीं चली, क्योंकि वो शख्स एजुकेशन मिनिस्टर का असिस्टेंट और एक सोशल एक्टिविस्ट भी था।
उन्होंने ऐसे बहुत से स्कूल की व्यवस्था को ठीक करा रखा था। उनके जोर देने पर तुरत ही सोनू के स्कूल में पेंट-पोचारा कराया गया, क्लासेज में बेंच और डेस्क बनवाकर लगवाया गया, पंखे लगवाए गए, और साथ ही साथ कुछ स्टाफ्स को स्कूल और वाशरूम साफ़ करने के लिए भी नियुक्त किया गया। सोनू खुश था की उसके स्कूल की व्यवस्था देखते ही देखते कुछ ही महीनों में ठीक हो चुकी थी।
सोनू असमंजस में था की जो काम वर्षों से नहीं हुआ, वो काम कुछ ही महीनों में अचानक कैसे हो गया। आखिर वो सोशल एक्टिविस्ट अचानक उसके स्कूल में कैसे आ गया। तभी, कुछ दिनों बाद वहां सोनू से मिलने वो शहर वाले लड़के आए। उन्होंने सोनू से मुलाकात की और पूछा की अब तो तुम्हारे स्कूल में सबकुछ ठीक है ना?
उनके पूछने पर, सोनू उन्हें सारी कहानी कह सुनाया। जब सोनू ने सबकुछ बता दिया तब उनमें से एक ने कहा की वो शक्श उसके पिता हैं। वो हर जगह ऐसी चीजें पता करते रहते हैं की कही कुछ गड़बड़ तो नहीं है ना, सबकुछ ठीक तो है ना। उस दिन तुमसे बात करके मेरे यहां से जाने के बाद मैंने अपने पिता को तुम्हारे और तुम्हारे स्कूल के बारे में बताया था। और वो तुम्हारे स्कूल में आ कर सबकुछ ठीक कर दिए।
इसपर सोनू ने उनसे पूछा की आपको ये कैसे पता चला की मैं इसी स्कूल में हूँ? इसपर उन्होंने कहा की इस पूरे इलाके में सिर्फ एक ही स्कूल था जहा की व्यवस्था ठीक नहीं थी। जब मेरे पिता ने तुम्हारे बारे में पता लगवाया तब हमें पता चला की तुम यहाँ पढ़ते हो।
सोनू ने उनका तहे दिल से धन्यवाद किया और फिर अपने स्कूल में अच्छे से पढ़ने लगा। वक़्त गुजरे, साल गुजरा और सोनू उसी स्कूल में पढता रहा।
7 साल बाद
सोनू का स्कूल सिर्फ आठवीं क्लास तक ही था, उसके आगे पढ़ने के लिए बच्चों को शहर में एडमिशन लेना पड़ता था। सोनू की पढ़ाई उस स्कूल में पूरी हो चुकी थी। अब सोनू को चिंता थी की वो आगे कैसे पढ़ेगा। सोनू के पिता की स्थिति अभी भी वैसी ही थी। सोनू के पीछे उसकी दोनों बहनें भी उसी स्कूल में पढ़ रही थी। सोनू की एक बहन छठी क्लास तो दूजी बहन दूसरी क्लास में थी। दोनों की पढ़ाई भी अच्छे से चल रही थी। अभी भी सोनू के पिता दोनों बेटियों की शादी के लिए पैसा जोड़ ही रहे थे।
ऐसे में सोनू का एडमिशन शहर के किसी अच्छे स्कूल में कराना बहुत ही मुश्किल था। फिर भी सोनू के पिता ने सोनू की मेहनत को ध्यान में रखते हुए, जमा किये हुए पैसों में से थोड़ा सा निकाल कर सोनू का एडमिशन शहर के अच्छे स्कूल में करा दिया। अब सोनू 9th क्लास में था। सोनू एक बहुत ही होनहार लड़का था, उसके बड़े ही अच्छे मार्क्स आते थे।
एक दिन सोनू के स्कूल में एक टीम से कुछ लोग आये, जो की कुछ अच्छे, गिने-चुके होनहार बच्चों को स्कॉलरशिप ऑफर कर रहे थे। लेकिन इसके लिए वो बच्चों का एक एप्टीट्यूड टेस्ट ले रहे थ। जिसके भी उस टेस्ट में 85% से अधिक मार्क्स आते वो सिर्फ उन्ही को सेलेक्ट कर रहे थे और उन्हें स्कालरशिप ऑफर कर रहे थे।
सोनू ने भी उस टेस्ट में भाग लिया और वो अच्छे मार्क्स से उस टेस्ट को पास करके स्कॉलरशिप के लिए सेलेक्ट भी हो गया। उस स्कॉलरशिप के बदौलत उसने अपने नौवीं और दसवीं का एग्जाम भी क्लियर कर लिया। और अब वो मैट्रिक पास स्टूडेंट था। इसके बाद उसने वैसे ही बहुत सारे स्कॉलरशिप्स का एग्जाम दिया और देखते ही देखते उसने 12th और ग्रेजुएशन भी कर लिया। जब सोनू अपने कॉलेज में था तभी उसे कॉलेज के तरफ से जॉब कैंपस सेलेक्शन का ऑफर आया और वो वहां भी सेलेक्ट हो गया।
कॉलेज से पासआउट होते ही सोनू के हाथ में कैंपस सेलेक्शन के बदौलत जॉब भी थी। फिर अपनी कमाई से उसने पहले अपनी एक बहन की शादी भी करा दी। फिर अपनी शादी भी की, सबसे अंत में उसने अपने सबसे छोटी बहन की भी शादी करा दी।
सब कुछ सही था, तभी एक दिन उसके ऑफिस में कुछ नए लड़कों ने ज्वाइन किया और उन्हें सोनू की तरक्की से जलन होने लगी। क्योंकि हर कोई उसी की तारीफ़ करता था और उसी की मिशाल देते हुए मन लगा कर काम करने के लिए कहता था। ये सब देख कर उन्हें बहुत जलन होती थी क्योंकि वो सोनू की तरह मेहनत नहीं कर पाते थे। इसीलिए उनलोगों ने सोनू के खिलाफ साजिश की, षड्यंत्र रचा, और सोनू को उस ऑफिस से निकलवा दिया।
सोनू जाबलेस होने के बाद अपने गांव लौट आया। फिर उसे पता चला की बीएड करने के बाद वो सरकारी स्कूल की नौकरी के लिए अप्लाई कर सकता है। तो उसने फिर से पढ़ाई शुरू की और बीएड करके सरकारी स्कूल के जॉब के लिए अप्लाई किया। उसकी जॉब भी बतौर शिक्षक वहां लग गई।
सोनू ने लम्बे समय तक उस स्कूल में पढ़ाया, बाद में वो ट्रांसफर पा कर उसी स्कूल में पहुंच गया जहाँ से उसने खुद पढ़ाई की थी, इस बार वो इस स्कूल में स्टूडेंट नहीं बल्कि वहां का हेडमास्टर बन कर आया था। सोनू ने वही से हेडमास्टरी करते हुए अपनी रिटायरमेंट ली। सोनू के बच्चे एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं, क्योंकि अब उसके पास अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने कि हैसियत है। और यहीं थी कहानी, सोनू और उसके स्कूल की।
मोरल ऑफ़ द स्टोरी- अगर पढ़ने का जज्बा हो, तो स्कूल सरकारी हो या प्राइवेट, फर्क नहीं पड़ता। चाहे घर के हालत जैसे भी हों, अगर दिल में लगन, साथ में कड़ी मेहनत का जज्बा हो तो कोई भी पढ़ सकता है, और अपनी बेकार सी जिंदगी को खूबसूरत बना सकता है।
डिस्क्लेमर- यह कहानी पूरी तरह से लेखक की कल्पना है। सभी पात्र, लोग, स्थान काल्पनिक हैं। इसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। यदि आप इस कहानी में दिखाई गई किसी घटना को किसी अन्य कहानी या व्यक्ति की वास्तविक कहानी के समान पाते हैं, तो यह केवल एक संयोग है। लेखक का उद्देश्य केवल दर्शकों का मनोरंजन करना है। लेखक कभी भी इस कहानी के माध्यम से किसी समुदाय को आहत नहीं करना चाहता। यदि कोई व्यक्ति इस कहानी को अपने आप से जोड़ता है और दावा करता है कि यह पहले से ही उसके साथ हुआ है तो यह सिर्फ एक संयोग मात्र है और उस मामले में लेखक जिम्मेदार नहीं है।
The End
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