यह कहानी एक ऐसे उपद्रवी चरित्र की है जो अपने जीवन में संघर्ष करता है। वो एक गरीब पृष्ठभूमि से होता है। उसके पिता एक छोटे से शहर में रिक्शा चलाया करते हैं। बड़ी मुश्किल से उसके पिता अपनी आजीविका चलाया करते हैं और अपने परिवार का पेट भरते हैं। उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो बेटे होते हैं। बड़े बेटे का नाम श्याम राव होता है जिसकी एक सड़क दुर्घटना में कम ही उम्र में मृत्यु हो जाती है। और दूसरे बेटे का नाम बाबू राव होता है, जिसके उपर यह कहानी आधारित है।
गरीब पृष्ठभूमि के कारण बाबू राव एक अशिक्षित व्यक्ति होता है। जैसे - तैसे वो एक सरकारी स्कूल में तीसरी कक्षा तक अपनी पढ़ाई पूरी करता है और फिर अपने परिवार को सपोर्ट करने के लिए एक लाइन होटल में काम करना शुरू कर देता है क्योंकि उसके पिता की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो जाती है। और सदमे के कारण कुछ दिनों बाद उसकी माँ भी चल बसी। बाबू राव उस लाइन होटल में बर्तन धोया करता है और होटल के ग्राहकों को चाय और खाना परोसा करता है। किसी तरह आगे चलकर उसकी शादी हो जाती है। उसकी पत्नी से उसे दो बेटों होते हो "सुहास" और "रिहास"।
बाबू राव अभी भी अपनी गरीबी से जूझ रहा होता है। वह एक झोपड़ी में रहा करता है जिसे उसके पिता ने बनवाया था। अब उस घर में, वो और उसकी पत्नी अपने दो बच्चों के साथ रह रहे होते होते हैं। वो अपने गरीबी को मिटाने के लिए कोई रास्ता ढूंढ ही रहा होता है तभी एक अवसर खुद-ब-खुद चल कर उसके पास आता है और उसकी और उसके परिवार की जिंदगी बदलने में एक अहम् भूमिका निभाता है। आज अगर उनके जिंदगी में ये ना होता तो उन सब की ज़िन्दगी यूं ही चलती रहती।
एक दिन एक व्यक्ति, बाबू राव के लाइन होटल में आता है, वो होटल में आते ही एक कप चाय आर्डर करता है। उसी वक़्त उसके मोबाइल पर एक फोन आता है। वो फ़ोन उठाता है और फोन पर किसी तरह की बमबारी की बात करता है। जब बाबू राव उससे इस बारे में पूछता है तो वो उसे डांटते हुए ये बोल कर चुप करा देता है की वो अपने काम पर ध्यान दे लोगों की बातों पर नहीं। उसके जाने के बाद बाबू राव उस व्यक्ति के बारे में सोंचना शुरू कर देता है।
कुछ महीने पहले।
इंडिया-नेपाल बॉर्डर !
बिहार…
लाइन होटल में आने वाले व्यक्ति का फ़्लैशबैक…
वह व्यक्ति आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा हुआ होता है। उसका नाम रमेश होता है। वो एक फॉरेन इलीगल एक्टिविटी में इन्वॉल्व होता है। चीन जो की भारत में कई बार घुसपैठ करने की कोशिश कर चुका होता है वो भारत को परेशान करने के लिए नेपाल का सहारा लेते हुए बिहार के रास्ते भारत में एक बार फिर अपने कदम जमाने का प्रयाश करता है; चीन अपनी इस कोशिश को संभव करने के लिए अक्सर नेपाल और पाकिस्तान का हितैषी बनने का दिखावा करता है। चीन अक्सर पाकिस्तान से भारत पर हमले करवाता है, और खुलासा होने पर सिर्फ पकिस्तान बदनाम होता है। हम पहले ही पाकिस्तान के बारे में अनेकों कहानियां सुन चुके हैं जिसमें पकिस्तान के घुसपैठ के कारनामे सुर्ख़ियों में अपना स्थान बटोरा करते हैं। लेकिन, यहां कहानी का पूरा फोकस नेपाल पर है। बहुत सारे चीनी नेपाल में उनके हितैषी बन कर आते हैं और नेपाल के रास्ते वो भारत में नेपाली बन कर प्रवेश पाते हैं। वे अपने नकली कागजात के साथ भारत में अलग-अलग जगहों पर रह रहे होते हैं और देश में आपराधिक गतिविधियां कर रहे होते हैं। रमेश उन चीनी एजेंटों में से एक होता है।
फिर, सीन वापस लाइन होटल में आ जाता है।
बाबू राव लाइन होटल से अपने घर वापस आ जाता है। बाबू राव उस लाइन होटल में काम कर के जो पैसा कमा रहा होता है उन पैसों से उसके घर-परिवार के खर्चे उठाना और अच्छे से जीवन यापन करना बहुत ही मुश्किल होता है।
अब कहानी उस चीनी एजेंट रमेश की ओर मुड़ती है। रमेश को भारत में रहने के लिए एक कमरा चाहिए होता है। रमेश एक बार फिर, लाइन होटल में बाबू राव से मिलता है। रमेश, बाबू राव को अपने पास बुलाता है और वो उससे उस शहर में ठहरने के लिए आस-पास एक कमरा के बारे में पूछता है। जैसा की, बाबू राव और उसका परिवार गरीबी से जूझ रहे होते है और उसे पैसों की सख्त जरूरत होती है; उसी को ध्यान में रखते हुए बाबू राव, रमेश को अपने घर में रखने के लिए राजी हो जाता है। वो रमेश को अपने घर में रहने के लिए अपने घर का एक कमरा दे देता है।
बहुत जल्द, रमेश, बाबू राव के घर में शिफ्ट हो जाता है। और, वो सब उस घर में ख़ुशी ख़ुशी रहने लगते हैं।
एक दिन बाबू राव, रमेश से अपने बड़े बेटे सुहास को कोई नौकरी दिलवाने के लिए कहता है और रमेश उससे वादा करता है कि वो जल्द ही सुहास के लिए एक अच्छी नौकरी ढूंढ लेगा।
रमेश को अपनी आपराधिक गतविधियों को अच्छे ढंग से करने के लिए एक सुनहरा अवसर मिल जाता है, और वो बाबू राव के हालात का फायदा उठाते हुए, ऊँची तनख्वाह पर, सुहास से अपनी छोटी छोटी आपराधिक गतिविधियां करवाना शुरू कर देता है। जल्द ही बाबू राव के आँगन में पैसों की बारिश होने लगती है। देखते ही देखते बाबू राव एक जमीन खरीद लेता है और उस जमीन पर एक शानदार घर बनवाता है। वो झोपडी से एक बड़े से शानदार घर में आ जाते है। बाबू राव का जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। रमेश को अपने साथ पाकर बाबू राव अपने जीवन में बहुत ही खुश होता है। वो उन पैसों से अपने शहर में एक मेडिकल शॉप खोल लेता है जो की अच्छे से चलने लगती है, और यह उस शहर की सबसे अच्छी मेडिकल शॉप में से एक होती है।
अचानक सुहास को अपनी नौकरी को लेकर कुछ संदेह होने लगता है, और वो सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करता है, और शक के आधार पर, सुहास रमेश द्वारा दिए गए कार्यों को पूरा करने से इनकार करना शुरू कर देता है। एक दिन सुहास, रमेश को रंगे हाथों पकड़ लेता है, जब रमेश फ़ोन पर किसी के साथ अपनी अवैध गतिविधियों की योजना बना रहा होता है। रमेश, सामने आ कर सुहास पर चिल्लाना शुरू कर देता है, अपने बचाव में हड़बड़ा कर रमेश सुहास पर गोलियां चलाता है जिससे सुहास की तत्काल मृत्यु हो जाती है। सुहास को मारने के बाद, रमेश सुहास के मौत को एक दुर्घटना की तरह पेश करता है। और इससे पहले कि किसी और को इस सच का पता चले, वो बाबू राव के घर को छोड़ कर कुछ ही दिनों बाद निकल जाता है।
जाने से पहले, सुहास की मौत को एक्सीडेंट जैसा दिखाने के लिए, रमेश सुहास को कार में बैठाता है और कार को खाई में धकेल देता है। वो उस दृश्य को दुर्घटना घोषित कर देता है। ऐसा करने के कुछ ही दिनों के बाद वो वहां से निकल जाता है।
Interval
रमेश और उसके बड़े बेटे रिहास की अनुपस्थिति में बाबू राव खुद को अकेला महसूस करता है, लेकिन वो कभी भी अपनी भावनाओं को किसी के साथ नहीं बांटता है। अब उसके पास एक ही उम्मीद है और उस उम्मीद का नाम है उसका छोटा बेटा "रिहास"। रिहास कुछ भी नहीं कर रहा होता है। वह आमतौर पर घर में बैठकर सिगरेट और दारू पीया करता है। उनकी मेडिकल शॉप ठीक से चल रही होती है। बाबू राव, एक गरीब परिवार को अपनी दुकान की जिम्मेवारी दे देता है और उन्हें दुकान से कुल आय का कुछ प्रतिशत वेतन के रूप में दिया करता है। रिहास के मन में, अपने बड़े भाई सुहास की मौत को लेकर कुछ सवाल होते हैं और वो अपने बड़े भाई के मौत की दुर्घटना को स्वीकार नहीं कर रहा होता है। वो अनुमान लगा रहा होता है, कि शायद उसके भाई की हत्या कर दी गई हो, वो अपने बड़े भाई के हत्यारे का पता लगाने के लिए एक मिशन शुरू करता है।
वह सड़क पर लड़ाई-झगड़ा करने लगता है और ऐसे अनेकों मामले में कई बार जेल भी जाता है। और उसके पिता उसे जमानत पर हर बार वापस ले आते हैं। रिहास अपने भाई के हत्यारे को हर जगह ढूंढ रहा होता है और शक के आधार पर किसी से भी लड़ बैठता है। वो अपना ज्यादातर समय बियर और वाइन्स पीने में लगा रहा होता है लेकिन उसे अपने जीवन से संतुस्टी नहीं मिल रही होती है। वो अपने भाई की मौत के पीछे छिपे हुए रहस्य को जानने के लिए हर वक़्त व्याकुल होता है।
रिहास, रमेश को खोजने की कोशिश शुरू करता है क्योंकि सुहास उसके लिए काम कर रहा होता था। रिहास ऐसा सोंचता है की, रमेश ही उसके भाई की मौत का सच उसे बता सकता है। एक दिन, बाबू राव, रिहास को अपने कमरे में बुलाता है और उसे डांटते हुए समझाता है कि वो अपने जीवन में क्यों कुछ नहीं कर रहा है? बाबू राव उसे कहता है की उसे कहीं नौकरी करनी चाहिए। अपने पिता की बात सुनकर रिहास नौकरी के लिए एक जगह ऑनलाइन आवेदन करता है और दूसरे शहर में इंटरव्यू के लिए उसे एक कॉल आता है। जब वो इंटरव्यू के लिए जाता है तब इंटरव्यू सेंटर पर वहां रमेश भी मौजूद होता है। लेकिन न तो रिहास, और ना ही रमेश, दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को नहीं देख पाता है।
दोनों बिना किसी आइ कांटेक्ट के एक दूसरे के बगल से निकल जाते हैं। रिहास एक बहुत ही इंटेलिजेंट लड़का होता है इसलिए उसे सफलतापूर्वक वो नौकरी के मिल जाती है। वो उस नए शहर में एक पोस्टमास्टर बन कर जाता है। वो अपनी नयी नौकरी से बहुत ही खुश होता है। एक दिन रिहास को एक पार्सल का आर्डर मिलता है जिसे एक पते पर छोड़ कर आना होता है। वो उस पार्सल को लेकर डिलीवरी के जगह पर पहुँचता है। वहां रिहास की नजर पहली बार रमेश पर पड़ती है। लेकिन, रमेश रिहास को नहीं देख पाता है। रमेश अनजाने में रिहास के सामने से आते हुए उसी कमरे के बगल के अगले कमरे में चला जाता है, जहां रिहास उस पार्सल को देने के लिए गया होता है।
रिहास उस वक़्त कुछ नहीं बोलता है लेकिन वो चुपचाप उसका पीछा करने की सोंच लेता है। अगले दिन रिहास उसी स्थान पर वापस पहुँचता है, और पास के एक किराने की दुकान से उस कमरे में रहने वाले व्यक्ति के बारे में पूछता है, और वहाँ उसे पता चलता है कि रमेश उस कमरे में एक नई पहचान के साथ रह रहा होता है और उसका नया नाम महेश है।
जैसा की, बाबू राव अपनी मेडिकल शॉप एक गरीब परिवार को सौंप चुका होता है, वो महीने के अंत में स्टोर पर जाता है और पैसे इकट्ठा करता है, और पूरे महीने की कमाई से 25% आय उस परिवार को दे देता है। दुकान अभी भी अच्छी चल रही होती है और उनकी हालत पहले से बेहतर होती है।
दूसरी तरफ भारत और नेपाल की सीमा से ये खबर आती है की, भारतीय सेना ने तीन चीनी एजेंट्स को पकड़ा है जो की नेपाली बनकर भारत में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे होते हैं।
इसी दौरान रमेश जो की जो भारत में एक चीनी एजेंट है, वो अपने साथियों के साथ, भारत में बम बनाने और किसी विशेष दिन विस्फोट करने की योजना बना रहा होता है, और इसके लिए वो पहले ही एक गाँव में अपना काम शुरू कर चुका होता है। वो एक गाँव के पास के वन क्षेत्र में, एक स्थान पर एक कारखाना बनवा कर अपने काम को अंजाम दे रहे होते हैं। उस कारखाने के आस पास बहुत ही घने पेड़ और घने जंगल होते हैं।
उन पेडों के एक छोर पर एक झरना होता है। उस झरने के पास की चट्टान के बीचो-बीच एक स्विच और एक कार्ड सेंसर होता है, जिसके द्वारा वो अपना कार्ड उस सेंसर के पास ले जाते हैं और उस चट्टान में से एक गेट खुल जाता है। उस कारखाने के प्रवेश द्वार से कुछ सीढ़ियाँ नीचे उतर रही होती हैं, वो सीढ़ियां एक बड़े से हॉल में जा कर ख़त्म होती है जहाँ वो बम बनाने का काम कर रहे होते हैं। और उनकी योजना के मुताबिक उन्हें एक विशेष दिन पर एक ही शॉट में विस्फोट कर भारत के अधिकांश हिस्सों को नष्ट करना होता है।
रिहास, रमेश के काफी करीब होता है, जिसकी नई पहचान एक नए नाम "महेश" से थी। इससे पहले कि रिहास महेश से कुछ पूछे, महेश उसे एक शॉपिंग मॉल में देख लेता है। और वो उसके पास आ जाता है और उसे बताता है की उसका ऑफिसियल नेम रमेश है लेकिन उसके घर में लोग उसे महेश कहते हैं। वो खुशी व्यक्त करता है जब उसे यह पता चलता है कि रिहास को उस शहर में एक पोस्टमास्टर की नौकरी मिल गई है। कुछ ही दिनों में रिहास और महेश के बीच गहरी दोस्ती हो जाती है।
लेकिन रिहास इस बारे में अपने पिता "बाबू राव" को कुछ भी नहीं बताता है। एक दिन महेश, रिहास से कहता है कि तुम इस पोस्टमास्टर की नौकरी में कितना कमाओगे; मैं तुम्हे अधिक कमाई वाली नौकरी दिलाता हूँ। मैं तुम्हें एक छोटा सा काम दूंगा जिसे करके तुम अपने बड़े भाई सुहास की तरह लाखों में कमा सकोगे। रिहास अपने भाई की मौत के बारे में भूल जाता है और वह लाखों की कमाई के इस प्रस्ताव के लालच में आ जाता है। वो काम के बारे में विस्तार से जाने बिना ही महेश के लिए काम करना शुरू कर देता है, वो इस काम के बारे में अपने पिता को भी नहीं बताता है। जल्द ही, वो लाखों की कमाई शुरू कर देता है और वह भी इस सच से अनजान होता है कि कब का वो एक आपराधिक गतिविधि में शामिल हो चुका होता है।
रिहास में अचानक हुए इस बदलाव के कारण इस बार बाबू राव संदेह में आ जाता है। जब रिहास अपने घर में अधिक पैसा खर्च करना शुरू कर देता है, और कुछ महंगी चीजें लाकर घर में भरनी शुरू कर देता है तब बाबू राव, रिहास से इस बारे में से पूछताछ करता है। बाबू राव के पूछने पर रिहास बस इतना ही बोल कर बात को टाल देता है की वो ये सब अपनी पोस्टमास्टर वाली नौकरी से खरीद रहा है। बाबू राव, रिहास पर नजर रखना शुरू कर देता है। एक दिन बाबू राव, रिहास के ऑफिस पहुँच जाता है और उसे वहां ये पता चलता है कि रिहास ने एक महीने पहले ही नौकरी छोड़ दी है।
बाबू राव चुपचाप वापस लौट आता है और रिहास से कुछ भी नहीं बोलता है। अगले दिन वो रिहास का पीछा करता है, और आखिरकार उसे पता चल जाता है की रिहास रमेश से मिल रहा है। इस बार, बाबू राव को रमेश पर भी शक हो जाता है और फिर वो रमेश का भी पीछा करना शुरू कर देता है। रमेश के पीछे जा कर उसे रमेश का भी सच पता चल जाता है की वो कौन है और वो क्या काम करता है।
एक दिन बाबू राव उस स्थान पर पहुँच जाता है जहाँ रमेश और उसके लोग बम बनाने का काम कर रहे होते हैं। उसे सारा प्लान पता चल जाता है और वो पुलिस को जाकर ये सारी बातें बता देता है। बाबू राव घर वापस आता है और रिहास को रमेश के साथ काम करने से रोकने की कोशिश करता है लेकिन रिहास उसकी बात नहीं सुनता है और रिहास वहां से रमेश के पास जाने के लिए निकल पड़ता है। बाबू राव उसके पीछे जाता है।
रमेश जब रिहास से मिलता है तब वो रिहास को अपने साथ उस जगह पर ले जाता है जहां वो बम बनाने का काम कर रहे होते हैं। और रमेश सबकुछ रिहास को अच्छे से बता देता है। तभी, बाबू राव सामने आ जाता है और वो रमेश से कहता है कि मैं तुम्हें तुम्हारे इस काम में कभी भी सफल नहीं होने दूंगा। तुम्हे ऐसा कुछ भी नहीं करने दूंगा।
उसी समय रिहास आगे बढ़ता है और अपने पिता के सर पे बंदूक तान देता है। रमेश, रिहास को, बाबू राव को गोली मारने के लिए कहता है लेकिन चतुराई से बाबू राव, रिहास से बंदूक छीन कर अपने हाथ में ले लेता है। और रमेश की ओर बंदूक तान देता है, लेकिन रिहास यह कहकर बीच में आ जाता है कि मैं तुम्हें रमेश को गोली नहीं मारने दूंगा।
बाबू राव, रिहास को गोली मार देता है और उसी वक़्त पुलिस का सायरन बजता है और पुलिस अंदर आ जाती है। सभी गिरफ्तार हो जाते हैं। जेल जाने से पहले रमेश, बाबू राव को सुहास के मौत का सच बता देता है। वो बाबू राव से कहता है कि वो उसे नहीं छोड़ेगा, और वो उसे उसी तरह मार डालेगा जैसे उसने सुहास को मारा था। और इस तरह बाबू राव, चीन की एक खतरनाक योजना से भारत को बचा लेता है।
बाबू राव को, भारत की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चीन की खतरनाक योजना से बचाने के लिए सम्मानित किया जाता है। बाबू राव को बस एक बात का दुख रहता है कि उसे देश की रक्षा के खातिर अपने दोनों बेटों को गवाना पड़ा।
To be continued…
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