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Wednesday, October 8, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एक अनोखा विचार

दोस्तों, 

जैसा की हम सब जानते हैं की हमारे देश में तेजी से विकास की राह पर चलने वाला एक अनोखा राज्य है "बिहार"।

जैसा की, ये तय है की जल्द ही बिहार में 2025  का विधानसभा चुनाव होने वाला है। तो इसमें सबके बीच होड़ मची हुई है की बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। सभी राजनेता अपने-अपने एजेंडा को ले कर अपना प्रचार कर रहे हैं कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो क्या बदलाव ले कर आएँगे।

उसी को लेकर मैं कुछ पॉइंट्स आपके बीच रखने वाला हूँ।

जनता कि मूल आवश्यकता होती है रोटी, कपडा, और मकान। अब हम अपने राज्य बिहार पर एक झलक डालेंगे कि क्या बिहार में मूल नागरिकों के पास रोटी, कपडा, और मकान है? तो इसमें से कुछ के जवाब "हाँ " तो कुछ के जवाब "ना" होंगे।

जब बात रोटी, कपडा, और मकान कि आती है तो हमें पता चलता है कि, कोई भी इंसान जिसके पास कुछ नहीं है, फिर भी वो अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के जैसे-तैसे भी अपने ज़रुरत कि "रोटी" खाने के लिए, और "कपड़े" पहनने के लिए, इसका निदान कर ही लेता है। मैं, ये नहीं कह रहा हूँ कि अच्छे या बुरे हालात में, ब्लकि मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि, वो नागरिक रोटी या कपड़ों का निदान कर पा रहा है।

अब ये सवाल उठता है कि क्या ये जुगाड़ परमानेंट है?

मैंने ये नहीं कहा कि "परमानेंट" या "टेम्परोरी" है, बल्कि बस इतना कह रहा हूँ, कि जुगाड़ कर पा रहा है। अब दूसरा सवाल उठता है कि क्या बिहार का हर नागरिक "रोटी" और "कपड़ा" का जुगाड़ कर पाने से वो नागरिक गरीब नहीं रहा, या फिर इतना होने के बावजूद भी गरीब ही रहा। जरा गौर करेंगे तो हमारा जवाब होगा "नहीं"। भले हीं सबके पेट भर जाते हैं, तन ढक जाते हैं, लेकिन उसके बावजूद भी वो गरीब रह जाते हैं। 

इसका सीधा अर्थ है कि एक नागरिक कि मूलभूत ज़रुरत "रोटी, कपडे, और मकान में से उन्हें रोटी, कपडे तो मिल जाते हैं लेकिन, तीसरी ज़रुरत जो कि "मकान" है, वो उन्हें नहीं मिल पाता है।

ये एक बड़ी, या फिर यूं कहें कि बहुत बड़ी समस्या है। हमें इस समस्या का निदान निकालना ही होगा, क्योंकि अगर उनके पास रहने के लिए मकान नहीं होगा तो, चाहे उन्हें पहनने के लिए बहोत सारा कपडा और खाने के लिए कितना भी खाना क्यों ना दे दिया जाए, वो गरीब ही रहेंगे। बल्कि, उनकी स्थिति पशुओं कि भाँती हो जाएगी।

अब, जानवरों में हमें ज्यादा दूर जाने कि ज़रुरत नहीं, बल्कि हम अपने नियर एंड डिअर फ्रेंड आवारा कुत्तों का उदाहरण ले लेते हैं। हम इंसानों के रहम-करम के कारण कुत्तों को भी रोटी मिल जाती है, और हम इंसानों में से कुछ ज्यादा उदार इंसानों कि वजह से आवारा कुत्तों को भी पहनने के  लिए कपडे भी मिल जाते हैं। 

मैंने खुद देखा है कि कुछ नागरिक रात में आवारा कुत्तों के साथ मजबूरी में सड़क पर नींद लेते हैं वो अक्सर ठंडी के दिनों में आवारा कुत्तों को भी कपडे पहना देते हैं। तो इस मुताबिक रोटी और कपडे का इंतेज़ाम ग़रीब नागरिक और आवारा कुत्ते भी कर लेते हैं, लेकिन वो रोटी कपडा मिलने के बावजूद भी वो ग़रीब हैं क्योंकि उनके पास रहने के लिए मकान नहीं है।

अब सवाल ये उठता है कि उन ग़रीब नागरिकों को मकान कैसे मिलेगा? क्योंकि, सिर्फ मकान ही एक ऐसी चीज है जो ये दर्शाता है कि बिना मकान वाले नागरिक अभी भी ग़रीब हीं हैं।

क्या मकान गरीबों को दिलाने के लिए बिहार सरकार ने कोई क़दम उठाया है? क्या गरीबों को मकान देने का वादा किसी सरकार ने किया है? अपने जवाब हमें कमेंट सेक्शन में लिख भेजें। स्वयं विचार करें और अपने राज्य को विकसित करने के लिए सही सरकार चुनें।

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